Sunday 22 November 2015

ऊँ श्री भालचंद्राय नमः




         जब किसी भी व्यक्ति का चेहरा देखते है तो पता चल ही जाता है कि यह भुखा है या इसका पेट भरा हुआ है जिसका पेट भरा हुआ होता है उसके भाल पर चंद्रमा की सी आभा चमकती है, और आज हम बात कर रहे है एक ऐसे ही भगवान की जो कहलाते है  श्री भालचंद्र जी  "ऊँ भालचंद्राय नमः"

          भगवान कौन ? मेरे मन मे यह सवाल रोज उठता है जब मै सुबह पुजा और ध्यान करने बैठता हुँ तो यह भगवान कौन है ? प्रश्न मेरे जैहन मे कौंधने लगता है आज कुछ अलग सा महसूस हो रहा था कुछ अदभुत सा दिखाई दे रहा था, जो प्रथम पुज्य है वह मुझे महसूस हो रहा था मुझे याद है जब मै पढाई करते समय कभी कभी लेट हो जाता था तो माँ कह देती थी – “बेटा पहले पेट पुजा फिर काम दुजा” आज मुझे मेरे ध्यान करते समय ऐसा दिखाई दे रहा था कि जिसे प्रथम पुज्य कहा गया है वह अपना आहार तंत्र हो सकता है, फिर मै ध्यान मे ढूबता ही चला गया मुझे सब कुछ सुना – सुनाया जाना पहचाना सा लग रहा था,

          “वक्र तुंड....” को मन मे गुनगुनाया और सीधा ग्रासनली पर ही मेरा ध्यान गया तो लगा वह भी तो वक्र ही है  टेढी मेढी,  और तुंड कहते है सांप के फन को और ग्रास नली भी सांप के फन जैसी ही होती है उपर से मुडी हुई और ऐसा लगता है कि सांप ने फन बनाया हो, और दांत तो सब लोगो के ग्रास नली से आगे ही होते है, सबसे आगे बस बाहर निकलने को तैयार, आप सब कुछ समझ रहे है जो मै कहना चाह रहा हुँ,

          “महाकायः...” को आप भी गौर से देखे तो लगेगा यह आमाशय की ही बात कह रहे है पुरा ध्यान लगाया तो पता चला की यह इतना बडा है कि कभी भरता ही नही है, कुबेर का भंडार भी इस पापी पेट को भर नही  सकता इसी लिये इसे कहा गया है महाकाय, इस प्रकार की एक कथा भी है, कि कुबेर के घर का सारा भंडार खत्म हो जाने पर भी इस महाकाय को भरा नही जा सका था,

           “सुर्यकोटी समः प्रभः ....” इसके दो अर्थ हो सकते है एक तो यह कि यह हमेशा करोडो सुर्य के समान आग बरसाता रहता है आप और मै यह तो सब जानते ही है कि  ये पेट की आग कभी भी नही भुजती नही है, इसमे पानी डालो या खाना यह एक दो घंटे के बाद फिर जल उठती है, दुसरा अर्थ यह है कि जब पेट भरा रहता है तब यह दुनिया रूपी शरीर सुर्य के समान चमकता रहता है और जब पेट खाली हो जाये तो हम जानते ही है कि क्या हाल बिगडते है,

            “निर्विघ्नम कुरू मे देवः सर्व कार्येषु सर्वदा..” इस संसार मे जितने भी काम होते है सब इस पापी पेट के लिये ही किये जाते है, जब भी कोई अपराध होता है तो यह सब इस पेट के लिये ही किये जाते है कोई रिस्वत लेते है तो किसके लिये,ये खून खराबा सब, यह माया का जाल जंझाल सब इस पेट के लिये ही होता है अतः प्रार्थना की गई है कि आप सब कार्यो को निर्विघ्न करने दे,जब हम किसी भी गलत काम को करवाने जाते है तो वहाँ के आसपास के लोगो या उस काम से जुडेलोगो का पेट पहले भरना पडता है वो इसी लिये कि वो सब कार्योको निर्विघ्न करने दे, और भी बहुत उदाहरण है जो यह सिद्धकरतेहै कि यह पाचन संस्थान को ही इंगित करके लिखा गया मंत्र है.

            मै ध्यान मे और गहराई तक ढुबता जा रहा था, मेरे सामने अब प्रथम पुज्य का का वाहन था, बेचारा चुहा.., क्या चुहा किसी का वाहन हो सकता है, लेकिन यह सत्य है, यह बात तो हम सब लोग जानते ही है कि वाहन पर बैठ कर यात्रा की जाती है और सवारी वाहन के उपर होती है, हमे मालूम है कि आमाशय के एकदम निचे अग्न्याशय होता है एक दम छोटा सा चुहे के समान, और उसमे से निकलने वाला स्राव ही पाचन तंत्र को आगे बढाने का काम करता है यह वाहन ही इस महाकाय को ढोता है, यदि वाहन खराब तो यात्रा नही हो सकती, इस वाहन के खराब होने पर यह प्रथम पुज्य सब काम करना बंद कर देता है, शरीरकी पाचन क्रिया खराबहो जाती है ... शेष आगे लिखता रहुंगा ...

            अभी तो बहुत है प्रथम पुज्य की पांच पत्नी, भाई, पिता-माता, कार्य, भोजन, रहन सहन...... चलो आज बस इतना ही ....

Sunday 5 July 2015

क्या पंचतत्व ही भगवान है ?

भगवान कौन ? यह सवाल जैहन मे घूम ही रहा था कि मेरे बच्चे स्कूल से आ गये और मुझसे कुछ पुछ्ने लगे कि आप जानते है कि भगवान कौन है ? मै चक्क्कर मे पड गया,कि जो मै लोगो से पुछ रहा हुँ वह बात मेरे नन्हे-नन्हे बच्चे मुझसे पुछ रहे है, मेरे कुछ भी ना बोलने पर  मेरी छ: साल की बेटी बोलने लगी- नही मालूम ... पापा को भगवान के बारे मे नही मालूम, मै बताऊ पापा , लेकिन बीच मे ही आठ वर्ष का मेरा बेटा बोल पडा -- पापा को तो मै बताउंगा कि भगवान कौन है, मै अचरज से उन दोनो को देख रहा था कि जिसे कोई नही जानता उसे ये  दोनो जानंते है सच मे इसी लिये बच्चो को भी भगवान कहा गया है मेरे दोनो भगवान एक साथ बोल पडे -- भगवान तो अपने  नाम मे छुपे है, मैने अनजान बनते हुये पुछा कैसे - दोनो बारी बारी  से बोलने लगे- आज हमारे स्कूल मे सर बता रहे थे कि भगवान का मतलब इस नाम मे ही है , बच्ची ने बोलना बंद किया तो बच्चा बोलने लगा -जैसे भ से भुमि, ग से गगन, व से वायु, आ से आग,न से नीर हो गये भगवान, ये पांच ही भगवान है, इतना कह कर वे दोनो उछलते  हुये अंदर चले गये, मै सोचने लगा कि कितना सरल उपाय बता दिया था बच्चो को , असल मे ये पंच महाभूत ही भगवान है इन्हे पंच तत्व कहते है लेकिन जो बात बच्चो को भी मालूम है उसके लिये ये बाबा लोग दर - दर क्यो भटक रहे है क्या ये पांच तत्व से बना शरीर या ये प्रकृति  ही भगवान है , फिर ये गणेश जी, शंकरजी,और विष्नु भगवान और उनके दस अवतार, यह सब तो अकेले हिंदु धरम मे ही है, बाकी और धर्मो मे भी तरह-तरह के भगवान है उनका नाम भाषा भेद से अलग -अलग है ये सब कौन है ? मै बच्चो की बात से थोडा सा सहमत हु कि लोग कहते है कि जितने भी जीव है वे सब भगवान के अंश है , तब यह बात सही हो रही है कि प्रकृति मे मुख्य रूप से ये पांच तत्व है इनके बिना हम जिवित नही रह सकते है और इन पांचो तत्वो से ही हम बने है " क्षितिजलपावक गगन समीरा, पंच तत्व से बना शरीरा,"इस लिये हम सब मे यानी सभी जीव निर्जीव सब मे भगवान का अंश है, तुलसी दास जी लिखतेहै "सिया राम मय सब जग जानी,कररऊ प्रणाम जोरी जुग पानी," फिर ये सिया राम  क्या है , यह पंच तत्व की बात मुझे भी बचपन मे बताई गई थी लेकिन मुझे तो ज्यादा दिन याद नही रही शायद बच्चो को भी ना रहे , बच्चे तो अब थोडे बडे हो गये है उनके लिये बात पुरानी हो गई है, लेकिन मेरी जिज्ञासा अभी भी बनी हुई है कि ये भगवान कौन है ?
इस जिज्ञासा का समाधान कभी ना कभी तो जरूर होगा, तब तक मै आप लोगो को यह समझाने की कोशीश करूंगा कि ये ब्रम्हा, विष्णु, महेश जी कौन है और क्या है भगवान विष्णु जी के चौबीस या दस अवतारो का रहस्य, और कौन है प्रथम पुज्य गणेश जी महाराज , आप पढ्ते रहे और मेरा मनोबल बढाते रहे, आप को मै सही कह रहा हुँ एक ना एक दिन भगवान को हम पहचान ही लेंगे ... अगली पोस्ट मे प्रथम पुज्य का ही खुलासा करेंगे ... इंतजार किजिये ..

Friday 24 April 2015

भगवान कौन ?

"ओम नमो भगवते वासुदेवाय" सभी धार्मिक लोगो का मानना है कि भगवान वासुदेव ही भगवान है कोई राम जी को कोई महादेव जी को भगवान मानता है कोई भगवान महावीर को मानता है लेकिन ये लोग भगवान है या भगवान के रूप है , भगवान का रूप तो चिकित्सक को भी कहा जाता है तो चिकित्सक भगवान हो गया, माँ को भी धरती पर भगवान का रूप कहा गया है तो क्या माँ भी भगवान हो गई, फिर लोग ये भी कहते सुने गये है कि भगवान साकार और निराकार रूप मे है सब रूप है सच मे भगवान कौन है? यह सही सही पता नही चल सका है जब रूप की बात आती है तो रूप तो एक समानता बताने वाला शब्द है न कि असली , सत्य क्या है मै इस खोज मे निकला हुँ, मेरे जैसे लाखो लोग इस सत्य की खोज मे भटक रहे है कोई हिमालय की कंद्राओ मे भटक रहा है कोई मंदिर मंदिर भटक रहा है, कई लोग दिगंबर धारण किये पुरी धरा पर भटक रहे है
मै रोज ध्यान  लगाता हुँ कि भगवान दिख जाये लेकिन भगवान की जगह दिन भर की समस्याओ के दर्शन होते है मुझे समझ मे नही आता कि क्या किया जाये , फिर सोचता हुँ क्या जरूरत है मुझे सत्य की खोज करने की,पर मन नही मानता वह कहता है कि खोज तो करनी ही चाहिये, किसी गुरू का सहारा लेना चाहिये गुरू को मालूम है कि भगवान कौन है और सत्य क्या है लेकिन क्या सच मे गुरू ये सब जानता है कि सत्य क्या है फिर वह स्वम क्यो भटक रहा है जानने के बाद तो  भटकाव बंद हो जाना चाहिये,
गुरू कौन है किसे गुरू बनाये यहा भी कहते है कि मनुष्य की प्रथम गुरू माँ होती  है, कोई कहता है जो ज्ञान पिता से मिलता है वही सच्चा ज्ञान होता है,सच मे पिता ही असली गुरू होता है, मैं ने एक जगह पढा था कि "कृष्णम वंदे जगद्गुरू" जगत के गुरू कृष्ण का वंदन करो, घोर समस्या है कि माता - पिता भगवान है या गुरू है, वासुदेव  यानी कृष्ण भगवान है या गुरू है , यह भटकाव है थोडा आप भी भटको और मुझे भी भटकने दो अगली पोस्ट मे फिर मिलते है इसी प्रश्न को लेकर कि भगवान कौन ?

Friday 3 April 2015

मेरा धर्म.....

आजकल धर्म पर बहुत बवाल हो रहा है चारो ओर लोग धर्म की हि बात करते नजर आते है कोई कहता है सब हिंदु है कोई कहता है सब मुस्लिम है कोई कहता है सब ईसा की संतान है किसी किसी मे देशभक्ति भरी पडी है वह कहता है कि देश पर मर मिटना ही धर्म है कोई मानवतावादि है तो कहता है सबका एक ही धर्म है मानवधर्म, इस तरह "मुंडे र्मुंडे मति र्भिन्ना" वाली बात हो रही है अब मै भी कोई ना कोई बात रखुंगा और कहुंगा कि यही धर्म है कुछ लोग मेरी बात मानेंगे और मेरे अनुयायी हो जायेंगे और वही धर्म स्विकार करके वह इस धर्म के गुणगान करने लगेंगे और फिर शुरू हो जायेगा नयाधर्म...
सच मे मेरा धर्म क्याहै यह प्रश्न फिर भीबना ही रहेगा कुछ लोग ये भी कहते देखे गये है यह काम करने से धर्म होता है तो फिर ये कोनसा धर्म है कुछ लोग कहते हैकि यह तो धर्म का काम था जैसे किसी के प्राण संकट मे थे और उसे बचा लिया गया तो बोलते है कि बडा ही धर्म का काम किया है यदि कोई जंगल मे प्यास से तडफ रहा है और उसे किसी ने पानी पिला दिया तो कहते है यह तो बडा ही धर्म-पुन्य का काम है ये सब कोनसे धर्म है ?
कुछ कुछ समझ मे आ रहा है क्या? जहाँ तक मेरी समझ मे आया है कि ये सब अच्छे कर्म को ही धर्म कह रहे है जो हिंदु,मुस्लिम आदि का जिक्र किया गया है वह इन अच्छे कर्मो की नियमो की संस्था है और ये अच्छे कर्म ही धर्म है " dharm means well being" बस जो अच्छा है प्रकृति के अनुसार है वह धर्म है आज बस इतना ही ... धर्म चर्चा जारी रहेगी अगली पोस्ट तक इंतजार करे