Thursday 9 June 2016

कर्मफल मिलता है ...!

भगवान को देखने की ललक ने कुछ परिवर्तन करने के लिये बाध्य कर दिया है,मै रोज यह सोचता हुँ कि भगवान को खोजने की चाह मे यह भी जानना जरूरी है कि खुद को तो जान लिया है क्या ? जब मन मे यह बात आई तो भगवान को खोजने की जगह खुद को खोजने का मन करने लगा मै ने बहुत विचार किया और  मै अपने आपको खोजने की प्रक्रिया मे लग गया,

जब खुद केअंदर झांका तो हजारो कलमश भरे पडे है ऐसा लगा, हम दुसरे लोगो की बुराईया करते रहते है दुसरे लोगो के अवगुणो को देखकर उन्हे उलाहना देते रहते है लेकिन कभी यह नही सोचते कि- मै कैसा हुँ मेरे अंदर भी ये बुराईया भरी पडी है मै यह सोचता हुँ कि मै  दुनियाँ का सबसे अच्छा इंसान हुँ और बाकी सभी लोग बुरे है लेकिन जब अंत समय आता है तो सब हिसाब होता है कैसा भी कर्म करो उसका वैसा ही फल मिलता है जब मै यह विचार करता हुँ कि किये गये कर्मो का फल अवश्य ही मिलता है तो मेरी रूह कांप जाती है

 गुरूदेव को जब आभास हो गया कि अंत समय आ गया तोउन्होने मुझे कहा- बेटा ! अब अंत समय आ गया है मेरे द्वारा किये गये सभी पापो का भुगतान करने का समय भी आ गया है वेदप्रकाश ! मैने मेरे जीवन मे दो वर्ष तक बहुत पाप किये है अब दो बरस तक इन पापो को भोगना ही पडेगा और दो वर्ष बाद मुक्ति हो जायेगी मै अब बस दो बरस और जीवूंगा ,ये बात उन्होने मुझे  9 अगस्त 2004 मे कही थी उस वक्त गुरूदेव का पैर फिसलने से पैर फ्रेक्चर हो गया था,इस घटना के ठीक दो साल बाद 23 अगस्त 2006 को गुरूदेव देवलोक चले गये, इस समयावधि मे उनको भयानक व्याधि ने घैर लिया था,पैरो मे फफोले हो गये थे, हम सब उनकी बहुत सेवा करते थे तब वे कहते थे -ये मेरी पुन्यो का फल है और जो कष्ट मै भोग रहा हुँ वह मेरे किये गये पापो का फल है

जब मै  यह विचार करता हुँ कि जब कर्मो का फल यही मिल जाता है तो यह स्वर्ग नर्क क्या है ? इनका क्या महत्व है सब कुछ यही है इसी धरती पर सब हिसाब हो जाता है, जब हमअपने आप को अंदर से झांकते है  तो लगता है घोर पापो का गौदाम भरा है, मनुष्य जितना अपने को खुद जानता है उतना उसे कोई दुसरा नही जान पाता, अपना मुल्यांकन खुद ही समय रहते ही कर लेना चाहिये वरना कर्मफल तो मिलना निश्चित है,

मेरा रोज  बिमार लोगो से ही पाला पड्ता है और उनमे से जो वृद्ध होते है वे सब अपनी अपनी गाथाये गाते है कि मैने ये पाप किया था उसका फल मुझे मिल रहा है "पुर्व जन्म कृतपापम व्याधि रूपेण बाधते " पुर्व जन्म मे किये गये पापो की सजा व्याधि के रूप मे आती है,अब पुर्व जन्म क्या है हम आज जो जन्म यानी जीवन भोग रहे है इसी जन्म का पहले का समय  ही पुर्वजन्म कहलाता है आज हम जो कर्म कर रहे है उस कर्म का फल हमे ठीक पंद्रह साल बाद मिल जाता है यदि हम अच्छे कर्म करते है तो अच्छा फल और बुरे कर्म करते है तो बुरा फल मिल ही जाता है, अब विचार तो मुझे और आपको करनाहै कि क्या करे जिससे फल अच्छा मिले वरना कर्म फल तो मिलता ही है...! 

1 comment:

  1. बहुत ही उम्दा ! आपकी लेखनी को नमन !!!

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