Tuesday 27 September 2016

भगवान को देखने के लिये चाहिये – दिव्य दृष्टि और समर्पण

भगवान को देखने के लिये चाहिये – दिव्य दृष्टि और समर्पण

मै रोजाना भगवान को ढुंढता हुँ लेकिन नही मिले कब मिलेंगे कोई भी यह मुझे बता नही सकता क्योकि भगवान किसी को दिखाई नही देते, क्यो नही दिखाई देते ? क्योकि उनको देखने के लिये एक बहुत ही स्पेसियल नजर की जरूरत है जिसे शास्त्रो मे दिव्य दृष्टि कहा गया है इसलिये ना नौमण तैल होगा और ना राधा नाचेगी,इसीलिये लोग कहते है भगवान के दर्शन दुर्लभ होते है

जब भगवान को देख ही नही सकते तो मिलने से क्या फायदा, साथ ही फालतु मे क्यो भटकना ? तो क्या मुझे भटकना छोड देना चाहिये, लेकिन भटकना छोडने से क्या होगा, यदि भटकने से भगवान ना भी मिले तो क्या ? कुछ ना कुछ तो हासिल जरूर होगाजैसे – कम से कम अपने आप से जानकारी जरूर हो जायेगी, मै कौन हुँ कहा से आया हुँ यह तो जरूर पता चल ही जायेगा, तो चलो भटकना ही शुरू करते है,

मै ने बहुत सी कल्पनाये की है कभी मुझे लगता है कि भगवान हमारे शरीर के किसी अंग का नाम है,जिसके तीन भाग बने हुये है ये ही त्रिलोक है ब्रह्म लोक,बैकुंठ धाम और शिव लोक है  जैसे –हृदय विष्णु भगवान है, मस्तिष्क है वह ब्रह्मा जी है और जिसने काम का नाश किया वह वे शिव भगवान प्रजनन संस्थान के अंग है ,

कभी लगता है यह शरीर ही भगवान है इसी का नाम है भगवान, जैसे – यह मानव शरीर ही भगवान का रूप है क्योकि जब भी भगवान ने अवतार लिया है मनुष्य की आवाज मे ही बाते की है और पुरा जीवन मानव की तरह ही बिताया है ,वराह, नरसिह, मत्स्य, कच्छप आदि अवतारो मे भी भगवान ने मनुष्य की वाणी मे ही बाते की है इसलिये ये मनुष्य ही भगवान हो ऐसा लगता है,

 कभी लगता है शरीर मे जो तरल पदार्थ बह रहा है जैसे- रक्त, जो शुद्ध रक्त धमनियो मे बहता है वह राम है और जो रक्त शिराओ मे बहता है वह लक्ष्मन है, कभी लगता है जो शुद्ध है वह कृष्ण है और जो अशुद्ध है वह बलराम है जिस प्रकार इनकी जोडी बनी हुई उसी प्रकार रक्त की भी एक प्रकार से जोडी बन रही है साथ मे जो लसिकाओ मे बहता है वह जगतजननी हो ऐसा प्रतीत होता है इस प्रकार मुझे लगता है कि तरल पदार्थ ही भगवान है,

कभी लगता है कि यह जो प्रकृति है यही भगवान है यह सब पंच तत्व से बना हुआ है भ से भुमि, ग से गगन,व से वायु, आ से आग, न से नीर यानि जल, बस इन्हे ही भ+ग+व+आ+न कहते है,

कभी लगता है कि भगवान शायद मानव शरीर की आयु अनुसार अवस्था का ही नाम है जैसे जब गर्भधारण होता है वह अवस्था मत्स्य अवतार, जब गर्भ पेट के अंदर विकास करता है तब कच्छप अवतार इस प्रकार ज्यो ज्यो अवस्था बढती जाती है त्यो त्यो भगवानो के अवतार भी होते रहे है यह एक विस्तृत विषय है जिस पर फिर कभी बात करेंगे, आज बात हो रही है कि मुझे अभी तक यह समझ मे नही आ रहा कि भगवान है कौन ? तो मै भगवान को पहचानुंगा कैसे ? और जब पहचान भी जाउंगा तो बिना दिव्य दृष्टी देखुंगा कैसे ? कुल मिलाकर सबसे महत्वपुर्ण यह कि पहले खुद को इस योग्य बनाना पडेगा, खुद मे इतनी पात्रता हो कि जब कभी भगवान मिले तो हम मिलने मे सक्षम तो हो,

ये दिव्य दृष्टि कौन देगा, अर्जुन को किसने दी, साथ ही संजय को किसने दी, धृटराष्ट्र को जब संजय कथा सुना रहा था तब उन्होने भी भगवान के विराट रूप को देख ही लिया था इसलिये सोचने वाली बात यह कि जब तक “दिव्य नजर” नही मिलेगी तब तक भगवान नजर नही आ सकते, लोग कहते है इस संसार मे ये कृपा गुरू कर सकता है जैसे विवेकानंद जी को उनके गुरू रामकृष्ण परमहंस जी ने माँ काली के दर्शन करवा दिये थे,शिवाजी को उनके गुरू रामदास जी ने विठल भगवान के दर्शन करवा दिये थे,वेदव्यास जी ने संजय को कृष्ण भगवान का विराट रूप दिखा दिया था, अर्जुन को खुद कृष्ण ने ही दिव्य दृष्टि दी थी, 

अब सोचने वाली बात यह है कि श्री रामकृष्ण जी ने सिर्फ विवेकानंद जी को ही क्यो दर्शन करवाये, सभी गुरूओ  की बात करे तो सभी ने एक एक ही को क्यो दर्शन करवाये ? क्या वे ही एक शिष्य थे ? उसके बाद , उसके पहले कोई और शिष्य नही हुये क्या ? क्या कभी किसी और शिष्य ने मांग नही रखी कि मुझे भी भगवान  के दर्शन करवाये, मैं ने ऐसा कभी ना सुना तथा ना ही पढा, ऐसा क्यो हुआ, इसका जबाव है कि विवेकानंद जी जैसे शिष्य गुरू के प्रति समर्पित हो गये थे जो समर्पित हो जाता है वह कृपा का पात्र होता है

अब यह स्पष्टहै कि जब तक समर्पण नही होगा तब तक दिव्यदृष्टि नही मिल सकती, किसी भी लक्ष्य को पाने के लिये समर्पण बहुत ही जरूरी है यदि हम किसी प्रतियोगिता मे भाग ले रहे हो या परिवार का पालन पौषण कर रहे हो सब जगह समर्पण जरूरी है पति का पत्नी के प्रति, पत्नि का पति के प्रति समर्पण जरूरी है यदि समर्पण नही है तो ना हम प्रतियोगिता मे सफल हो सकते ना ही परिवार का पालन कर सकते तथा ना ही पत्नी का प्यार पति को मिल सकता, ना ही पति का प्यार पत्नी को मिल सकता, किसी को भी यदि हम पुर्ण समर्पण भाव से पाने की चाह रखते है  तो वह अवश्य ही मिल जाता है,
 
मुझे पुरा भरोसा है कि मै भी भगवान की खोज मे पुर्ण समर्पित भाव से लग गया हुँ और पुर्ण मन से अभी चिंतन जारी है कि ये दिव्य दृष्टि किस प्रकार प्राप्त करे या ऐसा कौनसा गुरू मिलेगा जो मुझे दिव्य दृष्टि दे दे,मै अभी चिंतन मे ही हुँ, कि मै किसके प्रति समर्पण करू, कौन मेरा भ्रम मिटायेगा और ऐसा कौन होगा जो मुझे प्रभू के दर्शन करवायेगा,

 जब कभी भगवान मिल जाये तो उन्हे देखने की क्षमता तो हो, अब भगवान को खोजने ही निकल गये है तो मुझे लगता है यदि है तो मिलेंगे जरूर...... आप पढते  रहे जब प्रभु के दर्शन होंगे तो आप लोगो को भी मै ये लाभ जरूर दुंगा, आप लोगो को भी रास्ता बताता ही रहुंगा, लेकिन यह तो पक्का है कि घर बैठे तो भगवान मिलने वाले नही है अपने आपको सक्षम बनाने के लिये तपाना तो पडेगा आप भी तपस्या करे और मै भी करता हुँ…. < 

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