Wednesday 2 November 2016

कोई है जो रोकता है ?

हाँ कोई है जो हमें परमात्मा से मिलने से रोकता है मै मिलन करना चाहता हूँ। लेकिन बार बार कोई रुकावट आती है और मिलन नही हो पाता है ।
कौन है जो मेरे पास आकर मुझे बहकाता है । कभी मुझे लोभ में डाल देता है कभी माया में फाँस देता है आजकल मोह फाँस में डाल रखा है तुलसीदास जी कहते है "मोह सकल व्याधिन्न कर मुला" 
मैं उसके पास जाना चाहता हूँ। तो कोई बंधन मुझे जकड़ लेता है । मै बार बार इस दलदल में फ़स रहा हु लेकिन कब तक फसता रहूँगा यह कोई नही जानता । जब कोई भी प्रकार का फाँस नही आएगा तब शायद मैं मिल ही लूंगा भगवान से ।
लोग कहते है कि जब कोई भगवन की खोज में जाता है  तो उसे एक मायानगरी से गुजारना पड़ता है उस नगरी में भक्त फस भी जाता है और पार भी उतर जाता है । यह नगरी एक भयानक समुद्र से घिरी हुई होती है जिसे संसार सागर कहते है । इस सागर से बहुत कम लोग ही पार उतर पाते है । मैं बहुत कोशिश कर रहा हूँ लेकिन माया नगरी में फॅस ही जाता हूं ।
मुझे इस फाँस से निकलना ही है मेरी जिज्ञासा बढ़ती ही जा रही है । जैसे जैसे मैं आगे बढ़ रहा हु मेरा विश्वास भी बढ रहा है । मेरा मनोबल ही मुझे मेरी मंजिल तक मुझे पंहुचा देगा । फिर कोई भी बाधा मुझे रोक नही पायेगी।
अब एक बात सोचने वाली यह है कि सब को पार लगाने वाले ही भगवान है तो फिर रोकते क्यों है । मुझे लगता है कि भगवान के अलावा कोई और है जो यह चाहता ही नही है कि मैं भगवान से मिलु। शायद वह मेरा मन हो सकता है । यह मन की नगरी ही मायानगरी है औऱ यह शरीर ही संसार सागर है । क्योकि मन और शरीर के रिस्तो के लिए मैं इस नगरी में फ़स जाता हूँ लेकिन मैं  लगा हुआ हूं मुझे रोकने वाला क्या कोई है ?

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