Tuesday 22 November 2016

अपने आपको बदलना बहुत मुश्किल है ।

आज फिर से चिंतन मनन कर रहा हूँ। भगवान से मिलने की यात्रा में आप मेरे साथ चल रहे हैं। विस्वास हो तो भगवान अवश्य ही मिलते है । आप हम सब यदि विश्वास के साथ आगे बढ़ेंगे तो अवश्य ही मुलाक़ात हो जायेगी। अब सोचने वाली बात तो यह है कि यह विश्वास कैसे पैदा करे । ऐसा क्या करे क़ि हमें खुद पर भरोसा होने लगे । क्या अपने कर्मो को बदलने से हम खुद पर और परमात्मा पर विशवास कर सकते है ।

प्रत्येक व्यक्ति यह जानता है कि सामने वाला गलत है । तथा गलत काम कर रहा है। लेकिन यह कभी भी जानने की कोशिश नही करता तथा न ही  जान पाता है कि खुद कितना गलत है । और कितने गलत काम कर रहा है । मुझे रोजाना कोई ना कोई ज्ञान की बात बता ही देते है। मरीजो से मेरा काम पड़ता है तो उनके साथ आने वाले लोगो से भी पाला पड़ जाता है । साथ आने वाले विद्वान तथा महान पंडित लोग होते है कुछ न कुछ ज्ञान की उल्टी मुझ पर कर ही जाते है । मुझे सीख देने वाले कभी भी आत्म चिंतन नही करते है। बस आज की यही नीति रीति हो गई है कि अपना ज्ञान किसी न किसी को देते रहो और खुद का चिंतन मत करो ।

जहाँ तक मेरा मानना है कि जितना मनुष्य अपने आप को जानता है उतना दूसरा उसके बारे में नही जान सकता । मैं मेरी पत्नी से अक्सर कहता रहता हूँ कि तुम मेरे बारे में उतना ही जानती हो जितना मै तुम्हे बताता हूँ।

धारणा को हम जैसा चाहे वैसा बना सकते है। हम खुद से संचालित नहीं होते है हमे तो लोग संचालित कर रहे है । किसी ने कह दिया क़ि आप बहुत सुंदर है तो हम बहुत प्रसन्न हो जाते है , किसी ने कह दिया आप बड़े बदसूरत हो, तो हमे गुस्सा आ गया । हम ये जानते ही नही है कि हम सुंदर है या नही है । आजकल तो यह ट्रेड बन गया है कि जो बात टेली विजन में आती है वही सही लगने लगती है। लोग दूसरों को सुधारने का प्रयास तो करते है लेकिन खुद को सुधारने की कोशिश कभी नही करते है । हम तो सुधरेंगे नहीं और ज़माने को सुधार कर समाज सुधारने चले  है।

अपने अंदर बदलाव लाना पहला काम है। जबकि हमने इसे आखिरी काम बना लिया है । जब सब बदल जायेंगे , सब में बदलाव आएगा तो मेरे अंदर भी बदलाव तो आ ही जायेगा । इस प्रकार की सोच हो गई है। लेकिन यह सोच सही नही है। हमारे पूज्य लोग यह बार बार कहते है कि हम सुधरेंगे तो युग सुधरेगा, हम बदलेंगे तो युग बदलेगा। लेकिन हमारे अंदर यह बात नही घुसती। हमारे कुछ भी समझ में नही आता है । सभी लोग सत्संग कर करके सबको सुधारना चाहते है। जबकि बात है खुद को सुधारने की । हमारे अंदर बदलाव आ जाये तो सब कुछ बदल जायेगा ।

मै  रोज चिंतन करता हूँ, बदलना चाहता हूँ, लेकिन क्या मैं बदल पा रहा हूँ, क्या मैं कुछ बदल गया हूँ। नहीं अभी तक मुझमे कोई बदलाव नही आया है । खुद को बदलना बहुत ही कठिन काम है । किसी काम को बिगाड़ने और किसी व्यक्ति को बिगड़ने में बहुत कम समय लगता है और बहुत ही आसान भी होता है । लेकिन खुद को सुधारना, सही मार्ग पर चलना , ये काम बहुत ही कठिन है । लेकिन जब इस मार्ग पर चल पड़े है तो सुधार तो करके ही रहूँगा । अपने आप में बदलाव तो लाकर ही रहूँगा।

अब सन्त जनो की वाणी सुन ली है संत कहते है अपना सुधार करलो, अपने आप को जान लो , अपने अंदर के भगवान् को पहचान लो , तो फिर आपको किसी के आगे हाथ फैलाने की तथा किसी को मनाने की जरुरत नही पड़ेगी ।  फिर लोग भी अपने आप आपके पास आएंगे और लोगो में ही तो भगवान बसते है । फिर भगवान् भी खुद ही चले आएंगे खोजते हुए ।

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